लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी
भाग 36
नींद खुलने के बाद पुन: नींद आना बहुत कठिन काम है और वह भी इतने मीठे स्वप्न का इतना भयानक अंत हो तो फिर किसे नींद आएगी ? शर्मिष्ठा ने आसमान की ओर देखा । रात बहुत ज्यादा शेष नहीं थी । थोड़ी देर में भोर होने वाली थी । वह शैय्या छोड़कर खड़ी हो गई और बाहर "राधा वन" नामक उपवन में आ गई । उसके कक्ष से लगता हुआ यह एक उपवन था जिसका नाम उसी ने अपनी दासी राधा के नाम पर "राधा वन" रखा था । जिस दिन राधा वन नाम रखा था, उस दिन राधा बहुत प्रसन्न हुई थी । एक दासी को इतना सम्मान शर्मिष्ठा ही दे सकती थी । उसके पीछे पीछे उसकी दासी राधा भी "राधा वन" में आ गई ।
"उपवन में अभी अंधेरा है राजकुमारी जी । जरा संभलकर चलना , कोई सर्प या कोई अन्य कीट काट लेगा आपको । आप वापस अपने कक्ष में चलिए राजकुमारी जी" । राधा उससे करबद्ध होकर अनुनय विनय करने लगी ।
राजकुमारियां अपनी दासियों की बात कभी मानती हैं क्या ? शर्मिष्ठा अपनी ही धुन में कहने लगी
"अंधेरा कहां है ? कितनी शीतल , धवल चांदनी खिली हुई है यहां पर । सब कुछ स्पष्ट दिखाई दे रहा है । प्रत्येक लता , कुञ्ज, पुष्प, कोंपलें, पौधे और वृक्ष इस मधुर चांदनी में नहाकर और भी कोमल हो गए हैं । मासूम बचपन की तरह ये भी कितने मासूम लग रहे हैं । मैं थोड़ी देर इनके साथ खेलना चाहती हूं । इनसे बात करना चाहती हूं । इनके साथ मस्ती में झूमना चाहती हूं । ऐसा करो , तुम जाकर सो जाओ , मैं इनका संगीत सुनकर आती हूं" । शर्मिष्ठा मधुर चांदनी में उपवन में विहार कर मस्त मगन हो रही थी ।
"आपको अकेले छोड़कर मैं नहीं जा सकती हूं राजकुमारी जी । आप एक काम कीजिए , वहां आम्र मंजरी में झूला डला हुआ है । अभी मतवाला श्रावण मास भी चल रहा है । आप वहां चलकर झूला झूलिए और मैं बैठकर राग मल्हार गाऊंगी । क्यों , ठीक है ना" ?
शर्मिष्ठा को उसका यह प्रस्ताव मन भा गया था इसलिए वह आम्र मंजरी की ओर चल दी । आम्र मंजरी में अनेक झूले पड़े हुए थे । शर्मिष्ठा एक झूले पर जाकर बैठ गई । राधा उसे झूला झुलाने लगी । जल्दी ही झूले की गति बढ़ गई थी और वह झूला इतना ऊपर तक जाने लगा था कि शर्मिष्ठा अपने हाथ से आम के पत्ते तोड़कर दासी राधा पर बरसाने लगी थी । राधा भी शर्मिष्ठा के ऊपर आस पास से पुष्प तोड़कर बरसाने लगी थी । दोनों जनी हंसी ठिठोली करने लगीं । शर्मिष्ठा ने राधा से कहा
"ऐ राधा, तू तो कह रही थी कि तू राग मल्हार गाएगी । तो अब गा न राग मल्हार ! तेरा कंठ भी बहुत सुरीला है और मौसम भी बहुत मदमस्त है । मैं झूलूंगी और तू गायेगी, सच में बहुत आनंद आएगा । चल, अब जल्दी से सुना दे कुछ अच्छा सा" ।
शर्मिष्ठा से अपनी आवाज की प्रशंसा सुनकर राधा प्रसन्न हो गई और वह कोयल सी आवाज में मल्हार गाने लगी
झूला तो झूलै एक अलबेली नार ऐ जी
ऐ जी कोई झूला , हम्बै कोई झूला झुलावै राजकुमार ।।
झूला तो झूलै ....
राधा के इस राग मल्हार को सुनकर शर्मिष्ठा खिलखिला कर हंस पड़ी "गीत तो ठीक से गाओ राधा रानी । यहां कोई राजकुमार नहीं , एक सखि झूला झुला रही है" ।
"हां, वो तो ठीक है स्वामिनी, आज मैं झूला झुला रहीं हूं तो क्या हुआ, कल तो कोई राजकुमार ही झूला झुलाएगा" । राधा ने शर्मिष्ठा को छेड़ते हुए कहा । उसकी बात से शर्मिष्ठा प्रभावित हो गई और कहने लगी
"तुझे पता है क्या कि कोई राजकुमार ही मुझे झूला झुलाएगा" ?
"हां स्वामिनी, मैं जानती हूं कि आपको कोई राजकुमार ही झूला झुलाएगा । और वह भी कोई साधारण सा राजकुमार नहीं होगा, वह कोई चक्रवर्ती सम्राट ही होगा" । राधा की आंखों में विश्वास था ।
"हां, तू तो ऐसे कह रही है कि जैसे तू कोई ज्योतिषी है ? किस किस चक्रवर्ती सम्राट को जानती है तू" ? शर्मिष्ठा को अब झूले में कम और राधा से बातें करने में अधिक आनंद आ रहा था ।
"मैं तो एक ही सम्राट को जानती हूं देवी और वो हैं सम्राट ययाति" ।
ययाति का नाम सुनकर शर्मिष्ठा उछल पड़ी । राधा ने उसके मन की बात कह दी थी । उसने राधा के कंधे झिंझोड़ते हुए कहा "कैसे जानती है तू उन्हें" ?
राजकुमारी शर्मिष्ठा को ययाति के नाम पर इतना उत्तेजित होते हुए देखकर राधा प्रसन्न हो गई और कहने लगी
"मेरी एक खास सहेली है , चंपा । वह बता रही थी एक दिन । वह पहले सम्राट ययाति के महल में काम करती थी" ।
राधा की बात सुनकर शर्मिष्ठा ने कौतुहल से उसे देखा और कहा "क्या उसने कभी सम्राट को देखा है" ? शर्मिष्ठा का उत्साह देखते ही बनता था ।
"हां, उसने सम्राट को देखा था । वह उनकी ही सेवा में रही थी कुछ दिन" ।
"अरे वाह ! यह तो बहुत श्रेष्ठ बात बताई है तूने । क्या चंपा को तू अभी ला सकती है यहां" ? शर्मिष्ठा का धैर्य समाप्त हो रहा था ।
"अब ! इस वक्त ? अभी तो वह मीठे स्वप्न देख रही होगी राजकुमारी जी । भोर होते ही उसे ले आऊंगी मैं" । राधा ने असमर्थता जताते हुए कहा ।
शर्मिष्ठा के पास अब और कोई विकल्प नहीं बचा था । झूले में अब मन नहीं लग रहा था उसका । वह झूले से उतर गई और धीरे धीरे उपवन में टहलने लगी । वह भोर होने का इंतजार करने लगी । वह चंपा से सम्राट के बारे में जानेगी कि "वे दिखने में कैसे लगते हैं ? क्या क्या आदतें हैं उनकी ? कैसी प्रकृति है उनकी ? क्या वे बहुत क्रोधी हैं ? उन्हें क्या पसंद है और क्या पसंद नहीं है: ? सब कुछ जानकारी लेगी वह ।
जब किसी का इंतज़ार होता है तो समय की गति बहुत ही न्यून लगती है अन्यथा समय तो हिरण से भी तीव्र गति से दौड़ता है । "लगता है कि आज सूर्य देव गहरी निद्रा में हैं , तभी तो अब तक नहीं जागे हैं वे । अन्यथा अब तक तो अपने प्रकाश की किरणों से संपूर्ण जगत को प्रकाशमान बना देते ? ये रात भी इतनी लंबी क्यों होती है ? यदि ये थोड़ी छोटी हो जाती तो क्या बिगड़ जाता इसका" ? शर्मिष्ठा टहलते टहलते सबको कोसने का काम करने लगी थी ।
श्री हरि
7.7.2023
Gunjan Kamal
14-Jul-2023 12:26 AM
👏👌
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Hari Shanker Goyal "Hari"
14-Jul-2023 10:37 AM
🙏🙏🙏
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Varsha_Upadhyay
12-Jul-2023 08:53 PM
शानदार
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Hari Shanker Goyal "Hari"
14-Jul-2023 10:37 AM
🙏🙏🙏
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डॉ. रामबली मिश्र
12-Jul-2023 07:47 PM
👏👌
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Hari Shanker Goyal "Hari"
14-Jul-2023 10:37 AM
🙏🙏🙏
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